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इन दिनोँ न्यूज चैनलोँ पर कुछ खबरोँ की बाढ़ सी है ये खबरे हैँ :- रामविलास पासवान/जगदंबिका पाल/राजू श्रीवास्तव आदि बीजेपी मेँ शामिल । आखिरकार ये वहीँ लोग हैँ जो पिछले चार सालोँ से दूसरी पार्टियोँ, चाहे वह बीजेपी हो या कांग्रेस या कोई और , की जमकर निँदा आलोचना करते है और फिर पलटी मारकर उसी पार्टी का दामन थाम लेते हैँ और तो और वो दूसरी पार्टियाँ भी कम नहीँ हैँ जो बिना सोचे समझे चुनावी तालमेल और वोटोँ के समीकरण बनाने के लिए तुरंत ऐसे नेताओँ को टिकट दे देती हैँ जो कुछ दिनोँ पहले कटटर आलोचक और मुद्दोँ के विरोधी थे । आखिर ये किस प्रकार की राजनीति का उदय हो रहा है जहाँ केवल पार्टी की जीत सर्वोपरि है जनता की भलाई और पारदर्शिता का कोई मूल्य और महत्व ही नहीँ हैँ । इन नेताओँ को देखकर बिहारी का एक दोहा याद आता है :- “नहिँ पराग नहिँ मधुर मधु , नहिँ विकास ईहु काल । अली कली ही सोँ बिँध्यौ , आगे कौन हवाल “।। महात्वाकांछा अच्छी होती है पर अगर जिद का रूप लेकर गलत दिशा धारण कर ले , तो परिणाम भयानक होते हैँ ।
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